Khamoshi Gazal Hindi


Khamoshi Gazal Hindi 

देती है बाद में तकलीफें बहुत इसलिये 
    अब मैं किसी की निशानियाँ नहीं रखता

     कोई भी दोस्त रहता नहीं साथ जिंदगी भर 
इसलिये अब मैं किसी की मेहरबानियाँ नहीं रखता

मिलती है कुछ राहत ऐ तहजीब तुमको सुनकर
मगर अब मैं वो तुम्हारी शायरियाँ नहीं रखता

 लिखना है बहुत, दिल में है बहुत मगर 
अब मैं वो डायरियाँ नहीं रखता

   बच्चे नहीं बैठते अपने दादा के पास 
इसलिये कोई भी बुजुर्ग अब कहानियों नहीं रखता

Khamoshi Gazal Hindi

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तुम्हारे शहर का हाल चाल बड़ा सुहाना लगे 
  मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे।

 तुम्हारे बस में अगर हूं तो भूल जाओ मुझे 
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे काफी समय लगे।

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबों कि 
आस-पास की लहरों को भी पता न लगे।

वो फूल जो मेरे दॉमन से हो गए मंसूब 
ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे।

तू इस तरह से मेरे साथ बेवफाई कर 
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे।

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याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद 
 इक सितारे ने ये पूँछा रात ढल जाने के बाद

मैं ज़मीं पर हूं तो फिर क्यों देखता हूं आसमाँ 
ये ख्याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद।

दोस्तों के साथ चलने में भी खतरे हैं हजार
भूल जाता हूं हमेशा मैं संभल जाने के बाद।

अब ज़रा सा फासला रखकर जनाता हूं चराग़
 तजुर्बा ये हाथ आया हाथ जल जाने के बाद।

      वहशत-ए-दिल को है सहरा से बड़ी निस्बत 
अजीब कोई घर लौटा नहीं घर से निकल जाने के बाद।

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ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है।
  ऐसी तन्हाई की मर जाने को जी चाहता है।

घर की वहशत से लरजता हूँ मगर जानें क्यों 
  शाम होते ही घर जाने को जी चाहता है।

डूब जाऊं तो कोई मौज निशाँ तक न बताए 
  ऐसी नदी में उतर जाने को जी चाहता है।

कभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़े
 ऐसी मंजिल से गुजर जाने को जी चाहता है।

वही पैमाँ जो कभी जी को खुश आया था बहुत
  उसी पैमों से मुकर जाने को जी चाहता है।

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 नया इक रिश्ता पैदा क्यों करें हम 
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम

ये काफी हैं कि हम दुश्मन नहीं है
 वफ़ादारी का दावा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

   जुलेखा-ए-आजीबात ये है 
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम

 उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीजें
फकत कमरों में रहता क्यों करें हम

बरहना है सर-ए-बाजार तो क्या 
भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम

   नहीं दुनियाँ को जब परवाह हमरी
तो फिर दुनियाँ की परवाह क्यों करें हम

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