Chuninda gazale चुनिंदा गजलें


Chuninda gazale चुनिंदा गजलें

दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे

 हमको फरियाद करनी आती है
  आप सुनते नहीं तो क्या कीजे

   दुशमनी हो चुकीबद्र ए वफा 
 अब हक -ए-दोस्ती अदा कीजें।

   रंज उठाने से भी खुशी होगी
   पहले दिल दर्द आशना कीजे।

इन बुतों को खुदा से क्या मतलब
तौबा तौबा खुदा खुदा कीजे 

मौत आती नहीं कहीं गालिब
कब तक अफसोस जीस्त का कीजे 

Chuninda gazale चुनिंदा गजलें

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इन आंधियों में दिल का सहारा रहूँ
 हर हाल में एक दोस्त तुम्हारा रहूँ

हिचकोले ना खाये कभी कश्ती तेरी
 लहरों से जूझता हुआ किनारा रहूँ

जब सोच के तू मंद मुस्कुराए कभी
  आईने से सकता में इशारा हूँ

सपनों में अब सुकून बहुत मिलता है 
पलकों पे तेरी चमका सितारा हूँ

जब आँख खुले तू ही तू नज़र आये
 सहरा में भी दिलकश सा नजारा रहूँ

दुनिया ना समझ पाएगी ये राज़ कभी
    हर वक्त में बस तेरा दुलारा हूँ।

Chuninda gazale चुनिंदा गजलें

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बढ़ गया मर्ज दवाओं का असर बाकी है 
कई मसले हैं एक अच्छी खबर बाकी है

सब तरफ शोले भड़कते हैं और धुआँ धुआँ
 खबर पहुंची है बस अब मेरा शहर बाकी है

निकल पड़े हैं अपने दिल पर बोझा लिए 
अभी पड़ाव ना डाल लम्बा सफर बाक़ी है

फीकी मुस्कान है और फांके है हर रोज यहाँ
 रोग का रोना है अब चसम-ए-तर बाकी है

जिंदगी चार दिन की है भली गुलामी से 
खिलेंगे फूल कल शाखो पे समर बाकी है।

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जो दिल तड़पता था मैंने तेरे नाम कर दिया
इस जिंदगी में कुछ ऐसा काम कर दिया

सारे दिन की तपन सर्द रात की चादर ओढ़ी
तेरी संगत में मैंने खुद को बदनाम कर दिया

तेरे एहसान तले दब गए अरमान मेरे
दो चार गज़ की छाँव को नीलाम कर दिया

कभी आसमान की ऊँचाई पर ना गौर किया
मगर कफस ने उड़ानों का काम तमाम कर दिया

मेरी कहानी की शुरुआत बड़ी अच्छी थी
पर नया मोड़ दे कर सफर का अंजाम कर दिया।

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मेरे अश्कों का मोल क्या दोगे
 और कब तक मुझे सजा दोगे....

तेरी महफ़िल में ना जगह मेरी
 अपने कदमों में क्या पनाह दोगे

था भरोसा भी चाँद सूरज सा
 छीन कर रौशनी दगा दोगे

खूबियाँ तुम ना पाए कभी
 खामियाँ सब मेरी बता दोगे

लोग तो उँगलियाँ उठायेंगे 
अपने हिस्से के भी गुनाह दोगे

ठोकरें खा के सँभलते वाइज
 मुझे अनजाने में सुबह दोगे।

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ख्वाब को सच क्यूँ मान लेता हूं 
 बड़ा करने की ठान लेता हूँ

जब तेरा जिक्र होता महफिल में
 यादों की चादर तान लेता हूँ

लोग नजरें चुरा रहे हैं मगर
 दिल की हालत को जान लेता हूँ

छल कपट मेरे साथ खूब हुआ
 बुरा भला पहचान लेता हूँ

रोज की आपा धापी जारी है 
धूप से छाँव छान लेता हूँ

तुम मेरी मानो या ना मानो 
माँ की हर बात मान लेता हूँ।

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मेरी चादर पे सिलवटें कम हैं
 हलक है खुश्क जरा आँखें नम हैं

दिन से पीछा छुड़ा के आयें तो
 सामने मेरे तब शब-ए-गम है

उस तरफ बज रहे बाजे-गाजे
 बंद कमरे में साये और हम हैं

रात की बाँहों में सुकून कहाँ
 गुल के गालों पे सजी शबनम है।

जख्म ऐसा है की भरता ही नहीं
 वक़्त के हाथों में ही मरहम हैं

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अश्क रहने दे थोड़ा पानी दे
कोई दिलचस्प सी कहानी दें 

अभी तो दास्ताँ शुरू हुई
मुझे चढ़ती हुई जवानी दे

जिंदगी में मिले उतार चढ़ाव
 मुबारक मौके की निशानी दे

में अब दुनिया को बुझ लेती हूँ
 समझने वाला कोई ज्ञानी दे

माँ के घर में बहार बारह माह 
कुछ ऐसी याद मुझे पुरानी है

अभी लम्बा है रास्ता सामने 
धूप में छाँव की मेहरबानी दे।

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